पितर देव घर में हैं आए...
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
पितर देव घर में हैं आए ।
साथ स्नेह की खुशबू लाए ।
रंगोली से द्वार सजाएँ ।
घर-आँगन में दीप जलाएँ ।। 1।।
तिल जौं का पितु अर्ध्य चढ़ाया ।
खीर पुड़ी नैवेद्य लगाया ।
श्राद्ध पक्ष यह पावन आया ।
कर्तव्यों का बोध कराया ।2।।
परंपरा यह खूब मनाते ।
श्रद्धा से दायित्व निभाते ।
पितृदेव सदा रक्षा करना ।
खुशियों से मेरा घर भरना ।। 3।।
प्रतिवर्ष हमें उपकृत करना ।
धर्म कर्म को प्रवृत्त करना ।
नव पीढ़ी को जागृत करना ।
सीखें सब का आदर करना ।।4।।
जिस घर पूजा पितृ की होती।
बीज भलाई शुचिता बोती।।
खुश होकर पितृ यदि मुस्काते।
सुख से जीवन को भर जाते ।।5।।
सदा खुशी पालक को देना।
छाँव सुखद अनुभव की लेना।।
मिली हमें है स्नेहिल छाया ।
जीवन सुखकर हमने पाया ।।6।।
उऋण नहीं हों उपकारों से।
मात-पिता के संस्कारों से।।
काज किए सुत के हितकारी।
रहें सदा उनके आभारी ।।7।।









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