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हार्ट अटैक की शिकार गर्भवती महिला को चिकित्सा महाविद्यालय एवं अम्बेडकर अस्पताल  में   मिला जीवनदान

-प्रत्यक्षदर्शियों  के अनुसार डॉक्टरों की टीम ने बिना किसी औपचारिकता के किया एक ऐसा अक्षय दान, जिससे बच गई माँ और गर्भस्थ शिशु की जान 
-विभागाध्यक्ष कार्डियोलॉजी डॉ. स्मित श्रीवास्तव के अनुसार, महिला के पास न तो आयुष्मान कार्ड और न ही किसी प्रकार की निशुल्क उपचार की पात्रता थी फिर भी उस वक्त औपचारिकता से ज्यादा जरूरी थी गर्भवती की जीवन रक्षा
-मरीज के हृदय की मुख्य नस 100 प्रतिशत ब्लॉक थी, यदि गर्भवती की इस इमरजेंसी ऑवर में एंजियोप्लास्टी नहीं की गई होती तो हो सकती थी मृत्यु
-गर्भावस्था में हार्ट अटैक आने पर एंजियोप्लास्टी के अलावा उपचार का और कोई विकल्प नहीं
-एंजियोप्लास्टी के बाद जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ, नवजात को रेडिएशन से न हो नुकसान इसलिए रेडिएशन प्रोटोकॉल का पालन कर गर्भ को विकिरण से दी गई सुरक्षा
 रायपुर. ।.  प्रदेश के सबसे बड़े पं. नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय एवं इससे सम्बद्ध अम्बेडकर अस्पताल ने एक बार नहीं अनेकों बार गंभीर एवं जटिल केस में मरीजों की रक्षा कर यह प्रमाण दिया है कि शासकीय चिकित्सा संस्थान आज भी उपचार के मामले में किसी से कम नहीं। इसी की बानगी मंगलवार एवं बुधवार की दरम्यानी रात करीब 1 से 2 बजे के बीच अम्बेडकर अस्पताल स्थित एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट में देखने को मिली जब हार्ट अटैक की शिकार एवं चार महीने की गर्भवती महिला गर्भावस्था की जटिल समस्या के साथ दर्द से कराहते एक निजी अस्पताल से अम्बेडकर अस्पताल के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग पहुंची। जहां से उसे कार्डियोलॉजी विभाग में ट्रांसफर किया गया। वहां पर एसीआई के कार्डियोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. स्मित श्रीवास्तव, गायनेकोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ. ज्योति जायसवाल, डॉ. रूचि किशोर गुप्ता के निर्देशन एवं संयुक्त सहयोग से कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. एस. के. शर्मा एवं डॉ. कुणाल ओस्तवाल के साथ अन्य डॉक्टरों की टीम ने इमरजेंसी एंजियोप्लास्टी कर मरीज के साथ-साथ गर्भ में पल रहे शिशु की जान बचाई। मरीज के हृदय की मुख्य नस लेफ्ट एंटीरियर डिसेंडिंग आर्टरी में 100 प्रतिशत ब्लॉकेज थी। अस्पताल में मौजूद लोगों के मुताबिक अक्षय तृतीया पर दान का बहुत महत्व होता है और यहां पर मरीज की बेहद गंभीर हालत होने के बावजूद डॉक्टरों ने जोखिम उठाते हुए चंद मिनटों में ही निर्णय लेकर मरीज को जीवनदान दिया। वहीं डॉक्टरों के अनुसार मरीज का ऐसी स्थिति में अम्बेडकर अस्पताल आना और इसी दिन अक्षय तृतीया का होना संयोग मात्र है।
 पं. नेहरू चिकित्सा महाविद्यालय के डीन डॉ. विवेक चौधरी एवं अम्बेडकर अस्पताल अधीक्षक डॉ. संतोष सोनकर ने गर्भवती महिला के इलाज में शामिल रहे पूरी टीम को बधाई दी है तथा गर्भवती महिला एवं गर्भस्थ शिशु के बेहतर स्वास्थ्य की कामना की है।
 केस की कहानी, डॉ. स्मित श्रीवास्तव की जुबानी
40 वर्षीय महिला मरीज को हाई रिस्क प्रेग्नेंसी है। प्लेसेंटा प्रिविया (प्लेसेंटा द्वारा गर्भाशय ग्रीवा को अवरुद्ध करने से होने वाला गंभीर रक्तस्त्राव) की समस्या के साथ छाती के दाहिने हिस्से में बहुत ज्यादा दर्द हो रहा था। हाई रिस्क प्रेग्नेंसी और पीवी ब्लीडिंग के साथ मरीज एनीमिक थी। उसका हीमोग्लोबिन 6 से 7 ग्राम के आस-पास था। मरीज के पहले दो अर्बाशन हो चुके थे। यह उनकी तीसरी प्रेग्नेंसी थी। मरीज इसके साथ ही इनफर्टिलिटी का उपचार भी ले रही थी। मरीज का इससे पूर्व अपेंडेक्टोमी हुआ था। मरीज को जब अस्पताल लाया गया तो उसके छाती के दाहिने हिस्से में दर्द हो रहा था। वह छह घंटे के दर्द में आयी थी। प्रेग्नेंसी में सामान्यतः हार्ट अटैक नहीं होते। रात को एक से दो बजे के बीच मरीज को तुरंत कैथ लैब में लिया गया। एंजियोग्राफी से पता चला मरीज के हृदय की मुख्य नस लेफ्ट एंटीरियर डिसेंडिंग आर्टरी 100 प्रतिशत ब्लॉक थी। तुरंत वहीं पर एंजियोप्लास्टी की गई। उस वक्त मरीज के परिजनों के पास न तो आयुष्मान कार्ड था और न ही किसी प्रकार की अन्य औपचारिकताओं को पूरा करने का समय। हमें महिला की जान के साथ-साथ गर्भ की रक्षा करना जरूरी थी। यहां पर मरीज की जान की कीमत औपचारिकताओं से ज्यादा जरूरी थी। बिना किसी राशि या सहयोग के हमने एंजियोप्लास्टी कर मरीज की जान बचाई। अभी मरीज कैथ लैब आईसीयू में डॉक्टरों की देखरेख में भर्ती है। 24 घंटे के ऑब्जर्वेशन के बाद उसकी स्थिति बेहतर है।
 डॉक्टरों की टीम
विभागाध्यक्ष डॉ. स्मित श्रीवास्तव के निर्देशन में डॉ. एस. के. शर्मा, डॉ. कुणाल ओस्तवाल, डॉ. प्रतीक गुप्ता, डॉ. रजत पांडे, स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग से विभागाध्यक्ष डॉ. ज्योति जायसवाल, यूनिट इंचार्ज डॉ. रूचि किशोर गुप्ता के निर्देशन में डॉ. निशा वट्टी, डॉ. सौम्या, एनेस्थेटिस्ट डॉ. शालू, स्टॉफ नर्स डिगेन्द्र एवं मुक्ता उपचार करने वाले टीम में शामिल रहे।

 

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