बी.आर. चोपड़ा कभी पत्रकार हुआ करते थे
--नया दौर, हमराज, बागवान जैसी कई फिल्मों के अलावा सीरियल महाभारत का निर्माण किया
पुण्यतिथि पर विशेष
नया दौर, गुमराह, वक्त, धर्मपुत्र, निकाह, धूल का फूल, बागबान जैसी यादगार फिल्में बनाने वाले निर्माता- निर्देशक बी आर चोपड़ा यानी बलदेवराज चोपड़ा आज भले ही इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनकी बनाई इन फिल्मों और महाभारत जैसे धारावाहिकों को लोग आज तक याद रखे हुए हैं।
बी. आर. चोपड़ा और यश चोपड़ा सगे भाई हैं, लेकिन दोनों ही फिल्मकारों का फिल्म बनाने का अंदाज हमेशा अलग रहा और दोनों ने ही अपार सफलता देखी। बी. आर. हिंदी सिने जगत की उन हस्तियों में से थे जिन्होंने सिनेमा के सशक्त माध्यम का उपयोग न सिर्फ स्वस्थ मनोरंजन के लिए किया बल्कि कई सामाजिक मुद्दों को भी बहस के मुद्दों में शामिल कर दिया।
उनकी अधिकतर फिल्मों को जहां बाक्स आफिस पर अच्छी कामयाबी मिली वहीं समीक्षकों ने भी उनकी कृतियों की सराहना की। बी. आर. चोपड़ा का फिल्मी सफर करीब 50 साल का रहा और इस दौरान उन्होंने एक के बाद एक कामयाब फिल्में बनायी। साथ ही दूरदर्शन के लिए उन्होंने कई धारावाहिकों का निर्माण किया। उन धारावाहिकों में महाभारत सर्वाधिक चर्चित रही जिसे अपार कामयाबी मिली। धारावाहिक महाभारत की सफलता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कार्यक्रम के प्रसारण के समय में सड़कों पर वाहनों की संख्या कम हो जाती थी और गलियां वीरान हो जाती थी। उनके धारावाहिकों में महाभारत के अलावा बहादुर शाह जफर काफी लोकप्रिय हुए। इस साल लॉकडाउन के दौरान डीडी नेशनल पर पुन: इस सीरियल का प्रसारण किया गया और इस बार भी इस सीरियल ने सफलता की ऊंचाइयों को छुआ।
बी. आर. चोपड़ा की फिल्मों में जहां हमेशा कोई न कोई संदेश रहता था वहीं गीत और संगीत भी मधुर एवं कर्णप्रिय होते थे। उन्होंने अपनी फिल्मों में गायक महेंद्र कपूर की आवाज का बेहतरीन इस्तेमाल किया और महेंद्र कपूर ने उनकी फिल्मों में कई यादगार गाने गाए जिसे बाद की पीढिय़ां भी पसंद करती हैं।
अविभाजित पंजाब में 22 अप्रैल 1914 को पैदा हुए बी. आर. चोपड़ा के कॅरिअर की शुरूआत फिल्मी पत्रकार के रूप में हुई। विभाजन के बाद वह मुंबई चले गए। उन्होंने फिल्मी सफर की शुरूआत सिने हेराल्ड जर्नल से की। यहां से उन्हें फिल्मी माहौल में रहने का मौका मिला और वो फिल्मकार बन गए। 1949 में उन्होंने पहली फिल्म करवट बनाई जो नाकाम रही। लेकिन धुन के पक्के बी. आर. चोपड़ा ने हार नहीं मानी और 1951 में उन्होंने अफसाना फिल्म बनायी।
इस फिल्म में अशोक कुमार ने दोहरी भूमिका निभायी थी। यह फिल्म कामयाब रही और उनके पांव फिल्म जगत में जम गए। बी. आर. चोपड़ा ने 1955 में बीआर फिल्म्स की स्थापना की जिसकी पहली फिल्म नया दौर थी। यह फिल्म बेहद कामयाब रही और इसके गीत तो आज भी संगीतप्रेमियों को आकर्षित करते हैं।
इसके बाद उन्होंने एक ही रास्ता, साधना, कानून जैसी फिल्में बनायीं। अपने दौर में कानून ऐसी फिल्म थी जिसमें गाने नहीं थे, जबकि उस वक्त फिल्म के लिए गीत-संगीत बहुत महत्वपूर्ण माने जाते थे। 1970 और 80 के दशक में उनका फिल्मी सफर कामयाबी के साथ आगे बढ़ता रहा। इस दौरान उन्होंने इंसाफ का तराजू, निकाह जैसी बेहद चर्चित फिल्में बनायीं।
उनकी फिल्मों की सूची में गुमराह, वक्त, धर्मपुत्र, बागबान आदि शामिल हैं जो स्वस्थ मनोरंजन करने के अलावा सार्थक सामाजिक व उद्देश्यपरक थीं। फिल्म बागवान ने अमिताभ बच्चन और हेमामालिनी की जोड़ी को एक बार फिर नई ऊंचाइयां दीं। बागवान और बाबुल जैसी फिल्मों ने आज के बदलते समाज का चित्रण बखूबी पेश किया।
भारत में फिल्मों के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित बी आर चोपड़ा ने अनेक सम्मान और पुरस्कार प्राप्त किए। लंबे समय तक दर्शकों को बेहतरीन फिल्में देने वाले फिल्मकार बी. आर. चोपड़ा का पांच नवंबर 2008 को निधन हो गया। अपने पिता की गौरवशाली परंपरा को कायम रखने का प्रयास बी. आर. चोपड़ा के बेटे रवि चोपड़ा कर रहे हैं और इस समय बी. आर. बैनर के तले फिल्मों के अलावा धारावाहिकों का भी निर्माण हो रहा है। (छत्तीसगढ़आजडॉटकॉमविशेष)
Leave A Comment