महज भाषा नहीं हिंदी
- लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे
दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
महज भाषा नहीं है हिंदी ,सरस संस्कार धानी है ।
वेदों की अनुपम गाथा है , पुराणों की जुबानी है ।।
सूर कबीरा तुलसी मीरा ,पद रसखान बसे इनमें ,
बहती है भावों की सरिता, यह पुरखों की कहानी है ।।
रचयिता यह महाकाव्यों की , संतों की शुचि बानी है ।
श्रमिकों का स्वेद बूँद इसमें ,नयन-पीर का पानी है ।
कई धर्मों संस्कृतियों की ,बहती है धारा इसमें ,
संचित पिटारी अनुभवों की ,उमंग भरी जवानी है ।।
जलनिधि-सी यह विशाल हृदया,सरिता आनी-जानी है ।
अपनाया राह में जो मिला ,पावन गंगा का पानी है ।
एक सूत्र में बाँध रही है ,भिन्न-भिन्न परिवेशों को ,
सहज सरल हिंदी हैअपनी,विश्व भाषा बनानी है ।।
सुदृढ समृद्ध भाषा है यह,शब्द-माधुर्य का क्या कहना ।
अलंकृता रस ,छंद अर्थ की ,अभिधा लक्षणा व्यंजना ।
ताल राग भाव अनुगामिनी ,अनुपमेय हृद भाव कहे ।
शब्द-शब्द मोती बन खनके ,प्रेम-सुधा बह जानी है ।।
Leave A Comment