सजल
लेखिका-डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
भीड़ है पर सूना नगर लगता है।
बिना तुम्हारे दिन दोपहर लगता है।
सुस्वादु लगे रूखी रोटी संग तुम्हारे।
तुम नहीं छप्पन भोग जहर लगता है।।
प्रीति बुहारे जीवन पथ सुरभित कर दे।
चलें अकेले कंटकित डगर लगता है।।
धरती सूरज चांद सितारे सृष्टि भली।
आकंठ प्रेम में डूबे अपना ही घर लगता है।।
जहां मिले हम तीर्थ धाम गंगा यमुना।
पहिया वक्त का जाए अब ठहर लगता है।।
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