सिक्के के पहलू सरिस, सूरज बदले रूप...
दोहे
-लेखिका- डॉ. दीक्षा चौबे
- दुर्ग ( वरिष्ठ साहित्यकार और शिक्षाविद)
सिक्के के पहलू सरिस, सूरज बदले रूप।
ग्रीष्म तपे अंगार सम, शीत सुहावन धूप।।
सहमे दुबके हैं खड़े, भूख-प्यास की मार ।
धूप झाँझ के सामने, जीव सभी लाचार।।
मजबूरी की आग में, सपने सारे राख ।
तपतीं इधर जरूरतें, उधर तपे बैसाख ।।
सत्य धार तलवार की, हाथ बचाए मूठ ।
तीखे तेवर सत्य के, बगल झाँकता झूठ।।
ग्रीष्म-दरोगा है खड़ा,मूँछों पर दे ताव ।
राही को फटकारता, दे पैरों को घाव।।
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