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रथयात्रा के बाद भगवान जगन्नाथ के पुरी मंदिर लौटने पर ओडिशा में मनाया गया ‘रसगुल्ला दिवस'

भुवनेश्वर.ओडिशा में मंगलवार को रसगुल्ला दिवस मनाया गया, जो वार्षिक रथ यात्रा के बाद भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ के पुरी स्थित 12वीं शताब्दी के मंदिर में अपने निवास स्थान पर लौटने का प्रतीक है। रसगुल्ला दिवस 'नीलाद्रि बिजे' पर मनाया जाता है, जो देवताओं के मंदिर में लौटने की रस्म है और इस दिन उन्हें औपचारिक रूप से मिठाई चढ़ाई जाती है। राज्यपाल हरि बाबू कंभमपति, मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी और विपक्ष के नेता नवीन पटनायक ने इस अवसर पर लोगों को शुभकामनाएं दीं। राज्यपाल ने कहा, ‘‘नीलाद्रि बिजे और रसगुल्ला दिवस के अवसर पर सभी श्रद्धालुओं और ओडिशा के निवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं। नीलाद्रि बिजे और रसगुल्ला दिवस ओडिया संस्कृति, भक्ति और गौरव का जीवंत प्रतिबिंब है। इस पवित्र परंपरा पर सभी को भगवान का आशीर्वाद मिले। जय जगन्नाथ।'' नीलाद्रि बिजे को 2015 से रसगुल्ला दिवस के रूप में मनाया जाता रहा है।
 शोधकर्ता असित मोहंती ने कहा, ‘‘प्रारंभिक दिनों में मंदिर में इस मिठाई को ‘खीर मोहन' के नाम से जाना जाता था। यह रसगुल्ले के समान ही है।'' उन्होंने कहा, ‘‘हमारा रसगुल्ला बंगाल के रसगुल्ले से बिलकुल अलग है। बंगाल का रसगुल्ला 1868 में अस्तित्व में आया, जबकि यहां इस मिठाई की शुरुआत करीब 500 साल पहले हुई थी। बलराम दास द्वारा लिखित दानी रामायण में रसगुल्ले का उल्लेख है।'' मोहंती ने रसगुल्ले की उत्पत्ति का पुरी मंदिर से संबंध का पता लगाने के लिए साक्ष्य जुटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने कहा कि सदियों से भक्त 'नीलाद्रि बिजे' पर भगवान जगन्नाथ को रसगुल्ला चढ़ाते रहे हैं। उन्होंने कहा कि रसगुल्ला की उत्पत्ति पर कोई बहस नहीं होनी चाहिए।
 उन्होंने कहा, ‘‘बंगाल को अपने रसगुल्ले का आनंद लेने दें और हमें अपने रसगुल्ले का।''
 पूरे राज्य में लोग इस दिन को मनाने के लिए रसगुल्ले का आदान-प्रदान करते हैं, मिठाई की दुकानों पर खूब भीड़ होती है। भुवनेश्वर और कटक के बीच राजमार्ग के किनारे स्थित पाहाला गांव में एक विशेष समारोह का आयोजन किया गया, जहां रसगुल्ले की कई दुकानें हैं। प्रसिद्ध रेत कलाकार सुदर्शन पटनायक ने इस अवसर पर अपनी कलाकृति की एक तस्वीर ‘एक्स' पर साझा की।
 उन्होंने कहा, ‘‘जय जगन्नाथ... नीलाद्रि बिजे के पावन अवसर पर, महाप्रभु जगन्नाथ रत्न सिंहासन पर लौटते समय महालक्ष्मी को रसगुल्ला अर्पित करते हैं। ओडिशा के पुरी समुद्र तट पर मेरी रेत कला इस अनूठी रस्म के लिए है। ''

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