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 भारत धमकियों के आगे नहीं झुकेगा : पूर्व उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू

 नयी दिल्ली। पूर्व उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने अमेरिका के साथ बढ़ते व्यापार तनाव के बीच शनिवार को कहा कि भारत अपने रणनीतिक और राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा तथा बाहरी दबाव के बावजूद अपनी ऊर्जा सुरक्षा की रक्षा करना जारी रखेगा। नायडू ने यहां एम एस स्वामीनाथन शताब्दी अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘हम ऊर्जा सुरक्षा की रक्षा करते रहेंगे और अपने सामरिक एवं राष्ट्रीय हितों पर अडिग रहेंगे। किसी भी धमकी के आगे झुकने का सवाल ही नहीं उठता। भारत पर धमकियां काम नहीं करेंगी...।'' उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारत आज ''आत्मनिर्भर'' है, लेकिन ‘साझा करना और परवाह करना' की मूल भावना के साथ सहयोग के लिए प्रतिबद्ध है। पूर्व उप राष्ट्रपति की यह टिप्पणी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारतीय वस्तुओं पर शुल्क को 25 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने के बाद आई है। ट्रंप ने भारत को देश की मजबूत विकास दर के बावजूद ‘‘मृत अर्थव्यवस्था'' करार दिया था। नायडू ने कहा कि भारत तेजी से आगे बढ़ रहा है और विश्वभर में मान्यता प्राप्त कर रहा है, जबकि कुछ देश इस की प्रगति से ‘‘ईर्ष्या'' कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘वे हमारी प्रगति को पचा नहीं पा रहे हैं। वे अपच की समस्या से पीड़ित हैं।'' पूर्व उपराष्ट्रपति ने रेखांकित किया कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था रैंकिंग में चौथे स्थान से तीसरे स्थान पर पहुंच रहा है और विश्वास व्यक्त किया कि किसानों, शोधकर्ताओं और युवाओं के योगदान से देश ‘‘निश्चित रूप से और ऊंचाइयों तक पहुंचेगा''। नायडू ने भारत के रुख का बचाव करते हुए कहा कि देश एक ‘‘संप्रभु और जीवंत लोकतंत्र'' है जो 6.5-7 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि में 18 प्रतिशत का योगदान दे रहा है, जो अमेरिका के 11 प्रतिशत योगदान से कहीं अधिक है। उन्होंने भारत जैसे सहयोगियों पर चुनिंदा शुल्क लगाने की निष्पक्षता पर सवाल उठाया, जबकि अमेरिका यूरेनियम और उर्वरक का आयात जारी रखे हुए है, तथा यूरोपीय संघ ‘‘रूस से भारी मात्रा में कच्चा तेल'' आयात करता है। नायडू ने कहा, ‘‘हम मित्र थे। हम हमेशा अमेरिका की प्रशंसा करते हैं क्योंकि वह सबसे पुराना लोकतंत्र है और हम सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। हम एक-दूसरे का सम्मान करते हैं, प्रशंसा करते हैं, लेकिन जो कुछ हो रहा है, बिना किसी उकसावे या कारण के भारत के बारे में जो कुछ कहा जा रहा है, वह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है।'' कारोबार को लेकर तनाव के बावजूद पूर्व उप राष्ट्रपति ने रेखांकित किया कि भारत अन्य देशों के साथ मिलकर काम करना चाहता है तथा भारतीय दर्शन के मूल ‘‘साझा करना और परवाह करना'' में विश्वास करता है। उन्होंने कहा, ‘‘किसी को भी भारत के खिलाफ या भारत के बारे में कोई शिकायत रखने की कोई वजह नहीं है।''

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