संघ स्वयंसेवकों या उससे जुड़े संगठनों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित नहीं करता: भागवत
नयी दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने मंगलवार को कहा कि उनका संगठन अपने स्वयंसेवकों और उससे जुड़े संगठनों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित नहीं करता। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि संघ कोई दबाव समूह बनाने में नहीं, बल्कि सभी को एकजुट करने में विश्वास रखता है। भागवत ने यहां विज्ञान भवन में "100 वर्ष की संघ यात्रा : नए क्षितिज" विषय पर आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यान श्रृंखला के पहले दिन संबोधित किया। उन्होंने कहा कि आरएसएस के स्वयंसेवक विभिन्न संगठनों में अपने कामकाज में स्वतंत्र और स्वायत्त हैं तथा उन पर संघ के सुझावों का पालन करने का कोई दबाव नहीं है।
आरएसएस प्रमुख की यह टिप्पणी भाजपा के संगठनात्मक मामलों को लेकर संघ और सत्तारूढ़ दल के बीच कथित मतभेदों के बीच आई है। भाजपा वैचारिक रूप से आरएसएस से प्रेरित है। हालांकि, भागवत ने इस मुद्दे पर किसी संगठन का नाम नहीं लिया। विश्व हिंदू परिषद (विहिप), अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और आरएसएस से प्रेरित संगठनों सहित कुल 32 संगठन हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से संघ परिवार कहा जाता है। उन्होंने कहा कि स्वयंसेवक संघ से प्राप्त विचारों और संस्कार के आधार पर आवश्यक परिवर्तन और रचनात्मक सुधार लाने के लिए कई क्षेत्रों में काम कर रहे हैं। भागवत ने कहा, "लेकिन ये स्वयंसेवक जो करते हैं, वह उनका स्वतंत्र, पृथक और स्वायत्त कार्य है। इसका श्रेय उन्हें जाता है, संघ को नहीं।" उन्होंने कहा, "हालांकि, संघ को (यदि कोई बदनामी हुई है तो) इसका हिस्सा बनना होगा। क्योंकि माल हमारा गया है।''
उन्होंने कहा, "संघ न तो प्रत्यक्ष रूप से और अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रण करता है।" उन्होंने कहा, "हम कोई दबाव समूह नहीं बनाना चाहते; संघ पूरे भारत में सभी को संगठित करने के लिए है।" भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) का उदाहरण देते हुए, आरएसएस प्रमुख ने कहा, "हमारे स्वयंसेवक वहां काम करने गए थे। उन्होंने श्रम क्षेत्र से संबंधित पूरी दुनिया को एक नया दृष्टिकोण दिया।" आरएसएस प्रमुख ने कहा कि किसी भी संगठन में सभी स्वयंसेवक नहीं होते। उन्होंने कहा, "वहां कई अन्य लोग भी हैं। ये संगठन संघ के नहीं हैं। ये लोगों के हैं... इन संगठनों की स्थापना स्वयंसेवकों ने की है या वे वहां गए हैं।" उन्होंने कहा, "कई बार उनका प्रभाव घटता-बढ़ता रहता है। उन्होंने सबको साथ लेकर संगठन चलाया है। हमें यही सिखाया गया है।" भागवत ने कहा कि स्वयंसेवकों और संघ के बीच का बंधन अटूट और चिरस्थायी है।
उन्होंने कहा, "इसी वजह से स्वयंसेवक हमसे मिलते हैं, बातचीत करते हैं। हम भी बातचीत करते हैं। वे पूछते हैं, हम बताते हैं। अगर हमारे मन में कुछ आता है, तो हम बताते हैं। वे मदद मांगते हैं, हम मदद करते हैं। हम हर जगह अच्छे काम का समर्थन करते हैं, न केवल स्वयंसेवकों का, बल्कि किसी का भी। ऐसे कई उदाहरण हैं।" आरएसएस प्रमुख ने कहा, लेकिन उन पर संघ की बात मानने या सुनने का कोई दबाव नहीं है। उन्होंने कहा, "वे हमारी बात समझेंगे और वही करेंगे जो उनका मन करेगा। क्योंकि वे एक खास क्षेत्र में काम कर रहे हैं जिसमें उन्हें अनुभव और विशेषज्ञता हासिल है।" उन्होंने कहा कि संघ केवल यही अपेक्षा करता है कि ऐसे संगठन ठीक से काम करें और स्वयंसेवक अच्छा प्रदर्शन करें। भागवत ने कहा, "वे स्वतंत्र और स्वायत्त हैं और धीरे-धीरे इस हद तक आत्मनिर्भर हो जाते हैं कि वे (संघ से) मदद मांगने की स्थिति में नहीं रहते। हमें केवल स्वयंसेवकों की चिंता है। वे अपने संगठनों का ध्यान रखते हैं।"
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