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 आरएसएस आरक्षण का समर्थन करता रहेगा : मोहन भागवत

नयी दिल्ली. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने बृहस्पतिवार को कहा कि संघ आरक्षण का समर्थन करता रहा है और तब तक करता रहेगा जब तक इसके लाभार्थियों को यह महसूस नहीं हो जाता कि इसकी अब आवश्यकता नहीं है और वे अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं। अपनी तीन दिवसीय व्याख्यान शृंखला के अंतिम दिन इस मुद्दे पर पूछे गए सवालों के जवाब में भागवत ने समाज में जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि आरएसएस इसके लिए काम कर रहा है। आरएसएस प्रमुख ने कहा, "संघ पहले से ही संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण का समर्थन करता है। 
यह हमेशा रहेगा। और जब तक आरक्षण के लाभार्थियों को यह महसूस नहीं होता कि अब इसकी आवश्यकता नहीं है, भेदभाव समाप्त हो गया है और वे अपने पैरों पर खड़े हो सकते हैं, तब तक हम इसका समर्थन करेंगे।" उन्होंने कहा कि जब बालासाहेब देवरस आरएसएस प्रमुख थे, तब संघ ने आरक्षण के पक्ष में एक प्रस्ताव पारित किया था। भागवत ने कहा, "जब प्रस्ताव लाया गया था, तो इस पर बिल्कुल अलग-अलग विरोधी विचार थे। हमारे तत्कालीन सरसंघचालक (आरएसएस प्रमुख) बालासाहेब जी ने पूरे सत्र के दौरान विचारों को सुना और कहा, 'कल्पना कीजिए कि आप उन लोगों के परिवार में पैदा हुए हैं जिन्होंने एक हज़ार साल तक जातिगत भेदभाव का दंश झेला है और फिर अगले सत्र में बोलें।'" उन्होंने कहा कि अगले सत्र में आरक्षण के समर्थन में प्रस्ताव "सर्वसम्मति से" पारित कर दिया गया।
भागवत ने कहा कि संघ यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करता रहता है कि समाज के ऐसे कमज़ोर वर्गों को आरक्षण का लाभ मिले। उन्होंने कहा, "लेकिन जब हम ऐसा करते हैं, तो लोग कहते हैं कि आरएसएस भाजपा का वोट बैंक बढ़ाने के लिए ऐसा कर रहा है। ऐसा नहीं होना चाहिए।" भागवत ने कहा कि आरएसएस के स्वयंसेवक वंचित वर्ग के लोगों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ मजबूती से खड़े हैं। संघ ऐसे अत्याचारों के खिलाफ मजबूती से क्यों नहीं खड़ा दिखता, इस सवाल पर उन्होंने कहा, ‘‘जहां भी ऐसी घटनाएं होती हैं, स्वयंसेवकों को वहां जाना चाहिए। उन्हें सत्य और न्याय के लिए खड़ा होना चाहिए और पीड़ितों को न्याय सुनिश्चित करना चाहिए। यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी घटनाओं से समाज में झगड़े न हों। स्वयंसेवकों से यही सब अपेक्षित है।" उन्होंने कहा, "अगर किसी कारणवश ऐसा नहीं होता है, तो यह हमारी गलती है। संघ के स्थानीय स्वयंसेवकों के ध्यान में यह बात लाएं। इसका ध्यान रखा जाएगा।" 
मनुस्मृति में वर्ण व्यवस्था के संदर्भ में पूछे गए एक सवाल के जवाब में भागवत ने कहा कि 1972 में कर्नाटक के उडुपी शहर में एकत्रित "सभी धार्मिक नेताओं" ने कहा था कि हिंदू धर्मग्रंथों में छुआछूत के लिए कोई जगह नहीं है। उन्होंने कहा, "यदि ऐसा कोई संदर्भ है, तो हम उसे स्वीकार नहीं करते। यहां (भारत में) लोग जो चाहते हैं, वही होता है। हम पुस्तकों और धर्मग्रंथों में लिखी बातों का पालन नहीं करते। यही कारण है कि हमारे पास एक भी धर्मग्रंथ नहीं है। और लोगों ने अपनी सुविधानुसार (धर्मग्रंथों के) पाठ की अलग-अलग व्याख्या की है।" आरएसएस प्रमुख ने कहा कि देश के धार्मिक नेताओं को एक नयी स्मृति बनाने के बारे में सोचना चाहिए जिसमें भारतीय समाज के सभी वर्गों, संप्रदायों, जातियों और उपजातियों को शामिल किया जाए और उनके लिए "व्यावहारिक आचरण" की शिक्षा दी जाए। भागवत ने कहा कि आरएसएस देश में सामाजिक समरसता लाने के लिए प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा, "हर कोई समाज का हिस्सा है। कोई ऊंच-नीच नहीं है। सबका समान सम्मान है। सब अपने हैं। यह भावना जागृत करनी होगी। यह करना ही होगा। संघ यह कर रहा है।"
 

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