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मुंबई, कोहिमा, भुवनेश्वर महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित; पटना, जयपुर, दिल्ली सबसे असुरक्षित: रिपोर्ट

 नयी दिल्ली. कोहिमा, विशाखापत्तनम, भुवनेश्वर, आइजोल, गंगटोक, ईटानगर और मुंबई भारत में महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित शहर बनकर उभरे हैं, जबकि पटना, जयपुर, फरीदाबाद, दिल्ली, कोलकाता, श्रीनगर और रांची इस मामले में सबसे निचले पायदान पर हैं। बृहस्पतिवार को जारी राष्ट्रीय वार्षिक महिला सुरक्षा रिपोर्ट एवं सूचकांक (एनएआरआई) 2025 तो कुछ यही बयां करता है। यह राष्ट्रव्यापी सूचकांक 31 शहरों की 12,770 महिलाओं पर की गई रायशुमारी पर आधारित है। इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा स्कोर 65 फीसदी रखा गया है और शहरों को उक्त मानक से ‘काफी ऊपर', ‘ऊपर', ‘समान', ‘नीचे' या ‘काफी नीचे' श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। सूचकांक में शीर्ष स्थान हासिल करने वाले कोहिमा और विशाखापत्तनम जैसे शहरों के अच्छे प्रदर्शन के पीछे मजबूत लैंगिक समानता, नागरिक भागीदारी, पुलिस व्यवस्था और महिला-अनुकूल बुनियादी ढांचे का हाथ बताया गया है। वहीं, इसमें सबसे निचले पायदान पर काबिज पटना और जयपुर जैसे शहरों के खराब प्रदर्शन के लिए कमजोर संस्थागत प्रतिक्रिया, पितृसत्तात्मक मानदंडों और शहरी बुनियादी ढांचे में कमी जैसे कारकों को जिम्मेदार ठहराया गया है। ‘एनएआरआई-2025' में कहा गया है, “कोहिमा, विशाखापत्तनम, भुवनेश्वर, आइजोल, गंगटोक, ईटानगर और मुंबई राष्ट्रीय सुरक्षा रैंकिंग में सबसे आगे हैं, जिसके लिए मुख्यत: उच्च लैंगिक समानता, बेहतर बुनियादी ढांचा, पुलिस व्यवस्था और नागरिक भागीदारी जिम्मेदार है। वहीं, रांची, श्रीनगर, कोलकाता, दिल्ली, फरीदाबाद, पटना और जयपुर सबसे निचले स्थान पर हैं, जिसके पीछे खराब बुनियादी ढांचा, पितृसत्तात्मक मानदंड और कमजोर संस्थागत जवाबदेही जैसे कारकों का हाथ है।” रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल मिलाकर सर्वेक्षण में शामिल 10 में से छह महिलाओं ने अपने शहर में “सुरक्षित” महसूस करने की बात कही, लेकिन 40 प्रतिशत ने अब भी खुद को “उतना सुरक्षित नहीं” या “असुरक्षित” माना। सर्वेक्षण से पता चला है कि रात में सुरक्षित महसूस करने की धारणा में भारी गिरावट आई है, खासकर सार्वजनिक परिवहन में और मनोरंजन स्थलों पर। इसमें पाया गया है कि शैक्षणिक संस्थानों में 86 फीसदी महिलाएं दिन में सुरक्षित महसूस करती हैं, लेकिन रात में या परिसर के बाहर वे अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता में घिरी रहती हैं। सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग 91 फीसदी महिलाएं कार्यस्थल पर सुरक्षित महसूस करती हैं, लेकिन उनमें से लगभग आधी महिलाओं को यह स्पष्ट नहीं है कि उनके कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की रोकथाम (पीओएसएच) नीति लागू है या नहीं। इसमें कहा गया है कि जिन महिलाओं ने कार्यस्थल पर पीओएसएच नीति होने की बात कही, उनमें से अधिकतर ने इन्हें प्रभावी माना। सर्वेक्षण में शामिल केवल एक-चौथाई महिलाओं ने कहा कि उन्हें अधिकारियों के सुरक्षा संबंधी शिकायतों पर प्रभावी कार्रवाई करने का भरोसा है। उनहत्तर फीसदी महिलाओं ने कहा कि मौजूदा सुरक्षा प्रयास कुछ हद तक पर्याप्त हैं, जबकि 30 प्रतिशत से ज्यादा ने महत्वपूर्ण कमियों का जिक्र किया। केवल 65 फीसदी ने 2023-2024 के दौरान इसमें वास्तविक सुधार आने की बात कही। सात प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि 2024 में उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। 24 साल से कम उम्र की महिलाओं के मामले में यह आंकड़ा 14 प्रतिशत पाया गया। सर्वेक्षण में आस-पड़ोस (38 प्रतिशत) और सार्वजनिक परिवहन (29 प्रतिशत) को उन जगहों के रूप में चिह्नित किया गया, जहां महिलाओं को अधिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। इसमें पाया गया कि सिर्फ हर तीन में से एक पीड़ित ही उत्पीड़न की घटनाओं की शिकायत करने के लिए आगे आती है। ‘एनएआरआई-2025' के अनुसार, “सर्वेक्षण में शामिल हर तीन में से दो महिलाएं उत्पीड़न की शिकायत नहीं करती हैं, जिसका मतलब यह है कि एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) के पास अधिकांश घटनाएं दर्ज ही नहीं होतीं।” इसमें अपराध के आंकड़ों को एनएआरआई जैसे धारणा-आधारित सर्वेक्षणों के साथ एकीकृत करने का आह्वान किया गया है। राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) की अध्यक्ष विजया रहाटकर ने ‘एनएआरआई-2025' जारी करते हुए कहा कि सुरक्षा को केवल कानून-व्यवस्था के मुद्दे के रूप में नहीं देखा जा सकता, बल्कि यह महिलाओं के जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है, चाहे वह उनकी शिक्षा हो या स्वास्थ्य, कार्य के अवसर अथवा आवागमन की स्वतंत्रता हो। उन्होंने कहा कि जब महिलाएं असुरक्षित महसूस करती हैं, तो “वे खुद को सीमित कर लेती हैं, और महिलाओं का खुद को सीमित कर लेना न केवल उनके अपने विकास, बल्कि देश के विकास के लिए भी ठीक नहीं है।

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