जीव का कर्तव्य
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज हम सभी जीवों को हमारे कर्तव्य के विषय में समझाते हुए कह रहे हैं -
सभी विवेकी जीवों को यही निश्चय करना है कि हमारा लक्ष्य, हमारे सेव्य श्रीकृष्ण की सेवा ही है। वह सेवा भी उनकी इच्छानुसार हो। अपनी इच्छानुसार सेवा, सेवा नहीं है। वह तो अपने सुख वाली कही जाएगी। यह सेवाधिकार स्वाभाविक है। यथा -
- दासभूतो हरेरेव नान्यस्यैव कदाचन।
अर्थात समस्त जीवमात्र, अपने अंशी ब्रम्ह श्रीकृष्ण के नित्यदास हैं। यह दासत्व ही उनका स्व स्वरुप है। जिस प्रकार वृक्ष के अंश स्वरुप मूल, शाखा, उप-शाखा, पत्रादि अपने अंशी वृक्ष की नित्य सेवा करते हैं अर्थात वृक्ष की जड़ें पृथ्वी से तत्व निकालकर वृक्ष को देती हैं, शाखा, पत्ते आदि भी सूर्यताप, वायु आदि के द्वारा सेवा करते हैं। इसी प्रकार जीवों को अपने अंशी श्रीकृष्ण की सेवा करनी है। यही ज्ञातव्य है। यही कर्तव्य है।
प्रवचन स्त्रोत - आध्यात्म संदेश पत्रिका, मार्च 2005 अंक से।
(सर्वाधिकार सुरक्षित- जगद्गुरु कृपालु परिषत एवं राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली)
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