भगवान कब, कैसे मिलेंगे (अंतिम भाग - 6)
विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से नि:सृत प्रवचन श्रृंखला
(पिछले भाग से आगे...)
देखो, जब आप लोग पैदा हुये तो करवट बदलना भी नहीं जानते थे। फिर करवट बदलना आ गया तो बैठना नहीं जानते थे। खड़ा होना आ गया तो चलना नहीं जानते थे। लेकिन सब हो गया अभ्यास से, तो ऐसे ही भगवान को हर जगह अपने साथ महसूस करने का अभ्यास करोगे तो अपने आप हो जायेगा।
जब पहले दिन कोई लड़का साइकिल चलाना सीखता है तो बहुत घबड़ाता है। हैण्डिल संभालूं कि पैर चलाऊं, कि आगे पीछे देखूं क्या करुं? गिर जाते हैं बच्चे। लेकिन बाद में एक्सपर्ट हो जाते हैं, बहुत दिन चलाने के बाद एक हाथ में साइकिल है, एक हाथ में सामान है। पीछे भी देख रहे हैं, आगे भी देख रहे हैं। ऐसे हो हर काम अभ्यास से होता है। अर्जुन को भगवान ने यही बताया कि,
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।
अभ्यास हर वैराग्य इन दो साधनों से मन शुद्ध होगा। वैराग्य माने? संसार से हटाओ, अभ्यास माने भगवान में लगाओ। हर समय लगाने का अभ्यास। आधा घंटा एक घंटा जो करते हो तुम, करो, ठीक है। लेकिन उसके बाद भी कहीं भी हो, दुकान पर बैठे हो, ऑफिस में काम कर रहे हो, सदा यह फीलिंग रहे भगवान हमारे अंत:करण में बैठे हैं और हमारे वर्क को नोट कर रहे हैं। उसको बार-बार सोचो और अभ्यास करो। अगर यह अभ्यास हो जाये तो भगवत प्राप्ति में कुछ नहीं करना -धरना।
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