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विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में योगेश कथुनिया को एक और रजत पदक

नयी दिल्ली. भारत के योगेश कथुनिया ने मंगलवार को यहां विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में पुरुषों की एफ 56 चक्का फेंक स्पर्धा में एक और रजत पदक जीता जिससे वैश्विक स्तर पर अपने पहले स्वर्ण पदक की उनकी तलाश जारी रही। कथुनिया (28 वर्ष) ने दूसरे प्रयास में चक्के को 42.49 मीटर की दूरी तक फेंककर रजत पदक जीता। वह 2019 से सभी चार विश्व चैंपियनशिप में पदक जीत रहे हैं। कथुनिया ने पैरालंपिक खेलों (2021 और 2024) में दो रजत पदक के अलावा विश्व चैंपियनशिप में अपना लगातार तीसरा रजत पदक जीता। उन्होंने 2023 और 2024 में भी दो रजत पदक जीते थे। उन्होंने 2019 सत्र में कांस्य पदक भी जीता था। कथुनिया ने 2023 हांगझोउ एशियाई पैरा खेलों में भी रजत पदक जीता था। विश्व रिकॉर्ड धारक ब्राजील के स्टार क्लॉडनी बतिस्ता ने 45.67 मीटर के प्रयास से स्वर्ण पदक जीता। उनके सभी छह थ्रो कथुनिया के दिन के सर्वश्रेष्ठ प्रयास से बेहतर थे। 2019 सत्र से शुरू हुई विश्व चैंपियनशिप में बतिस्ता का यह लगातार चौथा स्वर्ण पदक है। उन्होंने पिछले तीन पैरालंपिक खेलों में भी स्वर्ण पदक जीता है। कथुनिया चार विश्व चैंपियनशिप और दो पैरालंपिक खेलों में ब्राजील के खिलाड़ी को नहीं हरा पाए हैं।
एफ56 श्रेणी उन एथलीटों के लिए है जो फील्ड स्पर्धाओं में बैठकर प्रतिस्पर्धा करते हैं। इस वर्ग में विभिन्न एथलीट प्रतिस्पर्धा करते हैं जिनमें अंग विच्छेदन और रीढ़ की हड्डी की चोट वाले एथलीट भी शामिल हैं। कथुनिया ने कहा, ‘‘यह अलग एहसास है क्योंकि मैंने अपने घरेलू मैदान पर रजत पदक जीता है। मेरे परिवार के सदस्य यहां हैं और अपने परिवार के सामने प्रदर्शन करके बहुत खुश हूं। उन्होंने हमेशा मेरा बहुत साथ दिया है इसलिए यह मेरे लिए खास है।'' पहले भी उन्होंने वैश्विक स्तर पर हर बार दूसरे स्थान पर रहने पर निराशा व्यक्त की थी।
उन्होंने कहा, ‘‘पिछले छह-सात वर्षों से रजत पदक मेरे साथ जुड़ा हुआ है लेकिन पदक के रंग में कोई गिरावट नहीं आई है लेकिन कोई बात नहीं, मेरा समय (स्वर्ण पदक जीतने का) आएगा।'' नौ साल की छोटी सी उम्र में कथुनिया को गिलियन-बैरे सिंड्रोम होने का पता चला था जो एक दुर्लभ स्व-प्रतिरक्षा विकार है। डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि वह फिर कभी नहीं चल पाएंगे और जल्द ही वह व्हीलचेयर पर आ गए। लेकिन तीन साल के भीतर वह फिर से चलने लगे इसका श्रेय उनकी मां मीना देवी को जाता है जिन्होंने अपने बेटे के इलाज के लिए फिजियोथेरेपी सीखी। कथुनिया हरियाणा के झज्जर जिले के बहादुरगढ़ के रहने वाले हैं। उनके पिता भारतीय सेना में सिपाही थे इसलिए उन्होंने चंडीगढ़ के इंडियन आर्मी पब्लिक स्कूल से पढ़ाई की और नयी दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से कॉमर्स में स्नातक की डिग्री हासिल की। कथुनिया ने कहा कि अगर बेल्ट को सख्ती से नहीं कसा जाता तो वह और बेहतर प्रदर्शन कर सकते थे।
उन्होंने कहा, ‘‘अधिकारी थोड़े सख्त थे। बेल्ट थोड़ी अधिक कसी हुई थी जिससे मूवमेंट में बाधा आती है और दूरी हमेशा कम से कम तीन से चार मीटर कम हो जाती है।'' बैठकर थ्रो करने की स्पर्धाओं में एथलीटों को विशेष रूप से बनाए गए थ्रोइंग फ्रेम पर बैठकर छह मिनट में छह थ्रो करने होते हैं जो पट्टियों से जमीन से बंधे होते हैं। एथलीट खुद को फ्रेम पर सुरक्षित रखने के लिए पट्टियों का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि नाभि के नीचे कोई भी हरकत जजों से कई तरह के फाउल का कारण बन सकती है। सऊदी अरब के नाइफ अलमसराही ने पुरुषों की 100 मीटर टी-44 फाइनल में विश्व रिकॉर्ड के साथ जीत हासिल की। ​​उन्होंने 10.94 सेकेंड का समय लिया। तटस्थ पैरा एथलीट डेविड द्जातिव ने पुरुषों की 200 मीटर टी-35, स्पेन के डेविड जोस पिनेडा मेजिया ने पुरुषों की 400 मीटर टी-20 और ट्यूनीशिया के यासीन घरबी ने पुरुषों की 400 मीटर टी-54 में मंगलवार सुबह चैंपियनशिप के तीन अन्य रिकॉर्ड बनाए। अलमसराही ने कहा, ‘‘मुझे यह समय हासिल करने की उम्मीद नहीं थी। मेरे मन में मैं 11 (सेकेंड) तक पहुंचने की तैयारी कर रहा था लेकिन मेरा प्रतिद्वंद्वी इतनी तेज दौड़ रहा था कि मुझे और तेज दौड़ना पड़ा।'' उन्होंने कहा, ‘‘यहां गर्मी है लेकिन यह सऊदी अरब में मेरे रहने के स्थान के समान है। और साथ ही यह ट्रैक उन सर्वश्रेष्ठ ट्रैकों में से एक है जिन पर मैंने दौड़ लगाई है।'' घरबी ने लगभग छह साल बाद वैश्विक स्तर की प्रतियोगिता में पोडियम पर जगह बनाई है। दिसंबर 2020 में एक प्रतियोगिता के इतर परीक्षण में बोल्डेनोन के लिए पॉजिटिव पाए जाने के बाद प्रतिबंध के कारण वह एक पैरालंपिक खेलों और दो विश्व चैंपियनशिप में हिस्सा नहीं ले पाए। वह पेरिस 2024 पैरालंपिक खेलों में पदक नहीं जीत पाए थे।

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