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 ईश्वर की भक्ति और मोक्ष देवताओं को भी दुर्लभः आचार्य धनंजय

0- कलश यात्रा के बाद महाराष्ट्र मंडल में श्रीमद् भागवत कथा शुरू, प्रतिदिनि शाम चार बजे से
रायपुर। महाराष्ट्र मंडल में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के पहले दिन धर्मसभा विद्वतसंघ श्रीश्री जगतगुरु शंकराचार्य पीठम के राष्ट्रीय अध्यक्ष ब्रह्मचारी निरंजनानंद आचार्य वेदमूर्ति धनंजय शास्त्री वैद्य ने भागवत के महत्व का समझाया। उन्होंने कहा कि देवताओं को भी दुर्लभ, ईश्वर की भक्ति और मोक्ष इस कलयुग में हमें श्रीमद् भागवत महापुराण का श्रवण करने मात्र से प्राप्त होता है। अपने मरणासन्न अवस्था पर राजा परीक्षित को महर्षि वेदव्यास के पुत्र शुकदेव ने श्रीमद् भागवत की कथा पहली बार सुनाई। 
आचार्य शास्त्री के संक्षिप्‍त कथा सुनाने से पहले महाराष्‍ट्र मंडल की महिलाओं ने पीले व भगवा धारण कर कलश यात्रा निकाली, जो स्‍वामी आत्‍मानंद सरोवर के तट पर स्थित शीतला माता मंदिर में दर्शन- पूजन कर लौटी। तत्‍पश्‍चात चंद्रग्रहण का सूतक शुरू होने से पहले आचार्य शास्‍त्री ने संक्षिप्‍त कथा का वाचन किया। उन्‍होंने कहा कि मरणासन्न राजा परीक्षित ने शुकदेव से पूछा कि मृत्यु के निकट खड़े व्यक्ति को क्या करना चाहिए, जिसके उत्तर में शुकदेव ने उन्हें भगवान विष्णु के नाम का स्मरण करने, उनकी लीलाओं का श्रवण करने और भक्ति का अभ्यास करने का उपदेश दिया। इससे अंततः राजा को शांति, मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति हुई।
आचार्य धनंजय शास्‍त्री के अनुसार जब शुकदेव जी महाराज राजा परीक्षित को कथा सुना रहे थे, तब इंद्र अमृत कलश लेकर उनके पास आए। उन्‍होंने कहा कि यह कथा हमें सुनाएं। इस पर शुकदेव जी बोले की यह मरणासन्न अवस्था में हैं, इन्‍हें भागवत कथा का श्रवण करना अधिक जरूरी है। तब इंद्र बोले हम परीक्षित के लिए अमृत कलश लेकर आए है। तब शुकदेव जी बोले मैं राजा परीक्षित को ज्ञानामृत दे रहा हूं। जिससे उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी यह अमृत कलश से अधिक महत्वपूर्ण है। इस तरह राजा परीक्षित ने ज्ञानामृत पाने के लिए अमृत का त्याग कर दिया। 
शीतला मंदिर तक निकली कलश यात्र
श्रीमद् भागवत कथा प्रारंभ होने के पूर्व बाजे-गाजे के साथ भव्य कलशयात्रा निकाली गई। कलशयात्रा की प्रथम पंक्ति में अजय- मेघा पोतदार श्रीमद् भागवत कथा को सिर पर उठाकर मंदिर तक पहुंचे। वहां से पूजा- अर्चना कर कलश यात्रा वापस कथा स्थल पर लौटी। तदोपरांत मुख्य यजमान शचिंद्र और डा. शुचिता देशमुख ने श्रीमद् भागवत और श्री बालमुकुंद की आरती की। कलशयात्रा में शामिल 51 महिलाएं जैसे ही कलश लेकर वापस आयोजन स्थल लौटीं, तो मंडल से सचिव आचार्य चेतन दंडवते ने सभी महिलाओं के चरण पखारे।
 

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