सुमित अंतिल ने तीसरा स्वर्ण पदक जीता, विश्व चैंपियनशिप के इतिहास में सबसे सफल भारतीय पैरा एथलीट बने
नयी दिल्ली. सुमित अंतिल विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप के इतिहास के सबसे सफल भारतीय खिलाड़ी बने जब उन्होंने मंगलवार को यहां अपना लगातार तीसरा भाला फेंक खिताब जीता जिससे भारत दो स्वर्ण और इतने ही रजत पदक जीतने में सफल रहा। दो बार के ओलंपिक पदक विजेता नीरज चोपड़ा की स्टैंड में मौजूदगी से उत्साहित 27 वर्षीय सुमित ने अपने पांचवें प्रयास में 71.37 मीटर के चैंपियनशिप रिकॉर्ड प्रयास के साथ पुरुषों की भाला फेंक एफ 64 स्पर्धा का खिताब जीता। उन्होंने 2023 सत्र में बनाए 70.83 मीटर के अपने ही चैंपियनशिप रिकॉर्ड को बेहतर किया लेकिन 73.29 मीटर के अपने विश्व रिकॉर्ड से लगभग दो मीटर दूर रहे जो उन्होंने 2023 एशियाई पैरा खेलों में स्वर्ण पदक जीतने के दौरान बनाया था। विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में उनके अलावा किसी भी भारतीय ने तीन स्वर्ण नहीं जीते हैं। सुमित ने कहा कि वह अपना ही विश्व रिकॉर्ड तोड़ना चाहते थे लेकिन उन्हें अपने कंधे में ‘सजून' महसूस हुई। भारत ने पुरुषों की भाला फेंक एफ44 स्पर्धा में संदीप सरगर के 62.82 मीटर के थ्रो के साथ एक आश्चर्यजनक स्वर्ण पदक भी जीता। इस स्पर्धा में मेजबान देश पहले दो स्थान पर रहा क्योंकि संदीप ने भी 62.67 मीटर के प्रयास के साथ रजत पदक जीता। ब्राजील के एडेनिलसन रॉबर्टो 62.36 मीटर के प्रयास के साथ तीसरे स्थान पर रहे। भारत के योगेश कथुनिया ने भी सुबह के सत्र में पुरुषों की एफ 56 चक्का फेंक स्पर्धा में एक और रजत पदक जीता जिससे वैश्विक स्तर पर अपने पहले स्वर्ण पदक की उनकी तलाश जारी रही। मंगलवार को चार पदक के साथ भारत चार स्वर्ण, चार रजत और एक कांस्य पदक के साथ चौथे स्थान पर पहुंच गया है। ब्राजील (7-14-6), पोलैंड (6-1-5) और चीन (5-7-4) भारत से आगे हैं। सुमित ने 2023 और 2024 में भी स्वर्ण पदक जीता था। इस 27 वर्षीय इस खिलाड़ी ने 2021 में तोक्यो और 2024 में पेरिस पैरालंपिक में भी दो स्वर्ण पदक जीते। वह एशियाई पैरा खेलों के मौजूदा चैंपियन भी हैं। कोलंबिया के टॉमस फेलिप सोटो मीना 48.38 मीटर के साथ दूसरे स्थान पर रहे जबकि कजाखस्तान के रुफत खाबीबुलिन ने 47.14 मीटर के साथ तीसरा स्थान हासिल किया। सुमित ने पांच मार्च 2021 को पटियाला में इंडियन ग्रां प्री सीरीज तीन में चोपड़ा के खिलाफ भी मुकाबला किया। सुमित ने खिताब जीतने के बाद कहा, ‘‘मैं अपना ही विश्व रिकॉर्ड तोड़ना चाहता था। मैं कोशिश कर रहा था लेकिन मुझे नहीं पता परसों जब मैं उठा तो मेरा हाथ काम नहीं कर रहा था। मुझे नहीं पता क्या हुआ।'' उन्होंने कहा, ‘‘शायद मैं गलत मुद्रा में सो गया था। मुझे नहीं पता। लेकिन अंत में मुझे खुशी है कि मैंने चैंपियनशिप रिकॉर्ड बनाया। मैंने थोड़े समय के लिए अपने फिजियो से इलाज करवाया। मुझे थोड़ी परेशानी हो रही थी लेकिन अंत में सब ठीक रहा।'' उन्होंने कहा कि वार्म अप थ्रो के दौरान जब उन्होंने पूरी ताकत लगाई तो उन्हें गर्दन में दर्द महसूस हुआ। कथुनिया (28 वर्ष) ने दूसरे प्रयास में चक्के को 42.49 मीटर की दूरी तक फेंककर रजत पदक जीता। वह 2019 से सभी चार विश्व चैंपियनशिप में पदक जीत रहे हैं। कथुनिया ने पैरालंपिक खेलों (2021 और 2024) में दो रजत पदक के अलावा विश्व चैंपियनशिप में अपना लगातार तीसरा रजत पदक जीता। उन्होंने 2023 और 2024 में भी दो रजत पदक जीते थे। उन्होंने 2019 सत्र में कांस्य पदक भी जीता था। कथुनिया ने 2023 हांगझोउ एशियाई पैरा खेलों में भी रजत पदक जीता था। विश्व रिकॉर्ड धारक ब्राजील के स्टार क्लॉडनी बतिस्ता ने 45.67 मीटर के प्रयास से स्वर्ण पदक जीता। उनके सभी छह थ्रो कथुनिया के दिन के सर्वश्रेष्ठ प्रयास से बेहतर थे। 2019 सत्र से शुरू हुई विश्व चैंपियनशिप में बतिस्ता का यह लगातार चौथा स्वर्ण पदक है। उन्होंने पिछले तीन पैरालंपिक खेलों में भी स्वर्ण पदक जीता है। कथुनिया चार विश्व चैंपियनशिप और दो पैरालंपिक खेलों में ब्राजील के खिलाड़ी को नहीं हरा पाए हैं।
एफ56 श्रेणी उन एथलीटों के लिए है जो फील्ड स्पर्धाओं में बैठकर प्रतिस्पर्धा करते हैं। इस वर्ग में विभिन्न एथलीट प्रतिस्पर्धा करते हैं जिनमें अंग विच्छेदन और रीढ़ की हड्डी की चोट वाले एथलीट भी शामिल हैं। कथुनिया ने कहा, ‘‘यह अलग एहसास है क्योंकि मैंने अपने घरेलू मैदान पर रजत पदक जीता है। मेरे परिवार के सदस्य यहां हैं और अपने परिवार के सामने प्रदर्शन करके बहुत खुश हूं। उन्होंने हमेशा मेरा बहुत साथ दिया है इसलिए यह मेरे लिए खास है।'' पहले भी उन्होंने वैश्विक स्तर पर हर बार दूसरे स्थान पर रहने पर निराशा व्यक्त की थी।
उन्होंने कहा, ‘‘पिछले छह-सात वर्षों से रजत पदक मेरे साथ जुड़ा हुआ है लेकिन पदक के रंग में कोई गिरावट नहीं आई है लेकिन कोई बात नहीं, मेरा समय (स्वर्ण पदक जीतने का) आएगा।'' नौ साल की छोटी सी उम्र में कथुनिया को गिलियन-बैरे सिंड्रोम होने का पता चला था जो एक दुर्लभ स्व-प्रतिरक्षा विकार है। डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि वह फिर कभी नहीं चल पाएंगे और जल्द ही वह व्हीलचेयर पर आ गए। लेकिन तीन साल के भीतर वह फिर से चलने लगे इसका श्रेय उनकी मां मीना देवी को जाता है जिन्होंने अपने बेटे के इलाज के लिए फिजियोथेरेपी सीखी। कथुनिया हरियाणा के झज्जर जिले के बहादुरगढ़ के रहने वाले हैं। उनके पिता भारतीय सेना में सिपाही थे इसलिए उन्होंने चंडीगढ़ के इंडियन आर्मी पब्लिक स्कूल से पढ़ाई की और नयी दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से कॉमर्स में स्नातक की डिग्री हासिल की। कथुनिया ने कहा कि अगर बेल्ट को सख्ती से नहीं कसा जाता तो वह और बेहतर प्रदर्शन कर सकते थे।
उन्होंने कहा, ‘‘अधिकारी थोड़े सख्त थे। बेल्ट थोड़ी अधिक कसी हुई थी जिससे मूवमेंट में बाधा आती है और दूरी हमेशा कम से कम तीन से चार मीटर कम हो जाती है।'' बैठकर थ्रो करने की स्पर्धाओं में एथलीटों को विशेष रूप से बनाए गए थ्रोइंग फ्रेम पर बैठकर छह मिनट में छह थ्रो करने होते हैं जो पट्टियों से जमीन से बंधे होते हैं। एथलीट खुद को फ्रेम पर सुरक्षित रखने के लिए पट्टियों का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि नाभि के नीचे कोई भी हरकत जजों से कई तरह के फाउल का कारण बन सकती है।

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